Manjrekar exposé: Filmmaker’s telephonic conversation with Chhota Shakeel

By on March 13, 2014

Manjrekar exposé: Filmmaker’s telephonic conversation with Chhota Shakeel

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One Comment

  1. Rakesh Kumar

    March 14, 2014 at 4:19 am

    मुमकिन नहीं है। पूँजीपति इतनी आसानी से सत्ता नहीं छोड़ेंगे। मोदी अगर फेल होगा तो किसी और को चुन लेंगे। लेकिन खेल खत्म नहीं होगा। अन्ना ममता के समर्थन में शौकिया नहीं आए हैं। उन्हें ऐसा करने को मजबूर किया गया है। ताकि केजरीवाल को कमज़ोर किया जा सके। अन्ना टीम के ज्यादातर हीरो कहाँ गए हैं, पता ही होगा। मोदी कमज़ोर पड़ने लगे हैं। बेचैनी इसी को लेकर है। हमें ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्रवाद पूँजीवाद का ही एक टूल है जो धार्मिक और जातीय कट्टरता से सींचित होता हुआ फासीवाद के चरम पर पहुँचता है। मोदी उभार की तह में जाओ। मोदी को लेकर पागलपन इसलिए नहीं है कि मोदी ने सचमुच विकास का रामबाण नुस्खा बना लिया है या कि उसके पास कोई जादू की छड़ी है… बल्कि उसकी छवि आधुनिक परशुराम की है, चाहो तो क्षत्रीय की जगह मुसलमान रख दो(हालांकि गुजरात दंगा देश का एकमात्र दंगा नहीं है और वोट का ये खेल सिर्फ बीजेपी या मोदी ने ही खेला, ऐसा भी नहीं है। बल्कि इस नुस्खे की बड़ी प्रैक्टिसनर और इन्नोवेटर कांग्रेस को माना जाना चाहिए।) तो कट्टर हिन्दुओं की नज़र में मोदी हिन्दू धर्म के उद्धारक और म्लेच्छ संहारक हैं। और कॉरपोरेट को एक ऐसा पपेट चाहिए जो बिना किसी ना-नुकुर के उसकी तमाम ज़रूरतों और इच्छाओं का सम्मान करे। तो ऐसे में मोदी से अच्छा ऑप्शन दूसरा नहीं हो सकता। मैंने पहले भी कहा था और आज भी कह रहा हूँ कि अन्ना के नेतृत्व में आक्रोश का उभार प्रायोजित था और ‘आप’ का गठन अप्रत्याशित। क्योंकि आप के बनने से पूरा मोटिव फेल हो गया। मोदी के पीछे पूरी इंडस्ट्रियलिस्टों की लॉबी है और पुण्य प्रसून के साथ बातचीत का जो छोटा सा लिंक लीक किया गया, उसमें भी मध्य वर्ग और वणिक समुदाय को ही भड़काना मकसद था। ख़ैर, छोड़ो भी क्या करना है! लोकतंत्र में भीड़ ही आगे होती है और फैसले भेड़िये ही लेते हैं।

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